गुरुवार, अप्रैल 17, 2014

"हाए नेताजी……… और उनके चापलूस, चापलूसी की भी हद होती है यार"

      लोकसभा के इस चुनाव में प्रत्यक्ष रूप से न सही अप्रत्यक्ष रूप में ही, न चाहते हुए भी इन नेताओ के बीच में रहने का और पूरे चुनाव को सलीके से, नजदीक से देखने का मौका मिल रहा है......... आप सोच रहे होंगे वो कैसे? अरे सरकार इवेंट कंपनी चलाने का उससे जुड़ने का यही तो फायदा होता है. हर तरह के लोगो से मिलने का उनके कामो को नजदीक से देखने का समझने का मौका मिलता है, और साथ ही बहुत कुछ सीखने का भी। अब सोच रहे होंगे हमारी इवेंट कंपनी का नेता जी और उनके चापलूसों से क्या लेना देना? तो सरकार माजरा कुछ ऐसा है. एक नेता जी के चुनाव को मैनेज करने का एक छोटा सा काम हमने लिया है. बस उसी में लगे है। अब आता हु मुद्दे पर मतलब चापलूसों पर।
       चापलूसों की चापलूसी की सुरुवात तो सुबह से ही, घर से ही हो जाती है और पूरे दिन के बाद रात तक जारी रहती है। बात करता हु कल की. कल हमारे नेता जी का नामांकन था। सुबह से ही मै और मेरी पूरी टीम लग गयी थी पूरे नामांकन को मैनेज करने में। गाड़ियों को छेत्र के अलग अलग हिस्सों में लोगो को लाने के लिए दूरी के हिसाब से डीज़ल की पर्ची बनाकर भेजा जाने लगा था। लोगो का जुटना शुरू  हो चूका था अब बारी थी पेट पूजे की सबको टिफिन के पैकेट बटने लगे। फिर बारी थी हमारी, नेता जी के साथ डाइनिंग टेबल पर बैठने की साथ ही कुछ ख़ास चापलूसों की चापलूसियत को सुनने की।
           एक महोदय कहते है नास्ता बड़ा अच्छा है, ऐसा नास्ता सालो बाद खाने को मिला है तो दूसरे महोदय बोलते है मीठे मे जो पेठा रखा गया है इसके आगे तो आगरा का अंगूरी पेठा भी बेकार लगता।  अब उन चापलूसों को कौन बताता सुबह सुबह इतना समय किसके पास है? जो नास्ता बनाये ये तो नास्ता रात का बना हुआ था जो खाने में पता भी चल रहा था। और पेठा वो आगरा का नहीं बल्कि कुंतल के हिसाब से ख़रीदा गया रामबाग का था।
       कमरे से बहार हम निकलते है। दो नौजवान चापलूस मिलते है उनका दावा  रहता है की हमारे साथ २० बाइक वाले है सबके लिए पेट्रोल की पर्ची दिला  दीजिये, पर्ची पाने के बाद जब चलने की बारी आती है तो वो दोनों हमारे आगे वाली सफारी में सवार हो जाते है। ४५ किलोमीटर का सफर और रोड शो करने के बाद हम पहुँचते नामांकन स्थल पर इस दौरान कई सारे चापलूस मिलते है और उनकी बड़ी लम्बी लम्बी चापलूसियत का सिलसिला जारी रहता है। नामांकन होता है फिर इंतज़ार सुरु होता है मुख्या अतिथि महोदया का। एक घंटे बाद वो अपने लाल रंग के पुष्पक विमान से आशमा  से जमी पर उतरती है, मंच पर आती है और विरोधियो को गीदड़, सियार, हाथी और न जाने क्या क्या बनाके खुद को बब्बर शेर बनाती है और फिर से अगली सभा के लिए उड़ जाती है। इस दौरान कई सारे  चापलूस एंगल बदल बदल कर साथ में फोटो खिचवाने में लगे रहते है।
         सभा समाप्त होने के बाद नेता जी मुझसे पूछते है किंजल जी लगभग कितनी भीड़ थी? मै  कहता हु सर 5000 से ऊपर थी। जो की विनिंग  पोजीशन को दिखाती है। क्योकि एक दिन पहले ही ठीक इशी जगह पर राज्य में सत्ता रूढ़ दल व एक अन्य बड़े दल का नामांकन हुआ था जिसमे बमुश्किल 1000 लोग ही जुट पाये थे। फिर नेता जी अपने दो चार और विश्वसनीय लोगो से फीड्बैक लेते है। अब बारी आती है चापलूसों की..... नेता जी एक से पूछते है कितनी भीड़ थी वो  तपाक से जवाब देता है एक लाख से ऊपर थी भैया .....  नेता जी कहते है धत, तब तक दूसरा बोलता है भैया जी कम से कम 50,000 तो थी ही लिखवा लीजिए। नेता जी कहते है अरे यार सही सही बोलो कम से कम 10,000 थी ना ? सभी बोल पड़ते है हा भैया।


      इस दौरान कुछ ऐसे चापलूस भी मुझे मिलते है जो लगातार नेता जी के साथ लगे हुए थे, कई दिनों से नेता जी के आगे पीछे घूम रहे थे और बताते फिर रहे थे की हम इनके बचपन के दोस्त है तो हम इनके पडोसी है। फिर बात बात में मै उन चापलूसों से बात करता हु नेता जी की पार्टी के प्रधानमंत्री पद के प्रतयाशी के प्रधानमंत्री बनने की तो उनमे से कुछ तुरंत कहते है। उसे किसी भी कीमत में प्रधानमंत्री नहीं बनने देंगे। उसके हाथ खून से रंगे है, तो कुछ कहते है अगर वो बन गया तो हम दलितों का जीना  दुस्वार हो जायेगा …  और न जाने क्या क्या। फिर मै  सोचने लगता हु की क्या ये सच में चाहते है की नेता जी जीते या फिर केवल उनका उपभोग कर रहे है? क्योकि अगर इन्होने नेता जी को जिताया तो निश्चित वो प्रत्याशी ही प्रधानमंत्री बनेगा जिसे नेता जी की पार्टी ने मनोनीत किया है।  और अगर उसे प्रधानमंत्री नहीं बनाना चाहते है तो निश्चित तौर पर नेता जी को हराना होगा। अब देखते है चापलूस क्या करते है?
      रात में जब मै घर के ऊपरी हिस्से में बने काल सेंटर में बैठा रहता हु तब नेता जी आते है, मै नेता जी से पूछता हु सर इन चापलूसों को आप इतना झेलते कैसे है? क्या आपको नहीं दिखता की ये चापलूसी कर रहे है। वो जवाब देते है किंजल जी दिखता तो सब कुछ है पर क्या करू चुनाव है भाई। हर व्यक्ति हर किसी को संतुस्ट नहीं कर सकता है "मै अपना कर्म कर रहा हु, वो अपना" फल तो ऊपर वाला देगा। बाकि धन्यवाद है उस परमात्मा का जिसने मुझे इतनी समझ दी की मै लोगो को पहचान सकु।
        खैर ये तो पूरी बात थी नेता जी और उनसे जुड़े चापलूसों की, जहा तक मेरा मानना है सच में इस चुनाव में (जहा मेरी इवेंट कंपनी काम कर रही है) एक ऐसी हवा चल रही है जिसे रोक पाना नामुमकिन लग रहा है। निश्चित ही इसका मुख्य कारण पिछली केंद्र सरकार के पंखे का ठीक से न चल पाना और मौजूदा राज्य सरकार के पंखे के हवा की दिशा का रुख एक ख़ास वर्ग और कुछ जातियों की तरफ होना भी है


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