शुक्रवार, फ़रवरी 28, 2014

चुनावों के मौसम में नेताओं का अभिनय

जब कुछ नेताओं को समाज के अलग अलग वर्गों के बीच उनकी समस्याएं सुनकर दुखी थोबड़ा बनाते हुए देखता हूँ तो मुझे बेचारे उन लोगों पे बड़ा तरस आता है जो अपनी समस्याएँ रो रो कर बताते हुए सोचते हैं कि अब उनकी समस्याओं का समाधान जरूर हो जाएगा क्योंकि राजा साहब बड़े दुखी हैं उनके लिए.
राजा साहब ने यही समस्याएँ पांच वर्ष पहले भी सुनी थी और सुनकर ऐसा ही दुखी थोबड़ा भी बनाया था, और पांच वर्ष पहले ही नहीं कई वर्षों से सुनते आ रहे हैं लेकिन उनका समाधान आज तक नहीं कर सके और हर दफा ऐसे अभिनय करते हैं कि जैसे ये समस्या आज ही पता चली हैं उनको...!

बेचारे परेशान लोग उनकी इस मुरझाई हुयी शकल को देखकर उन पर तरस खा लेते हैं और अपनी बागडोर फिर उनके हाथ में सौप देते हैं कि शायद इस दफा राजा साहब उनकी समस्याओं का समाधान जरूर करेंगे ...............ऐसे ही चला आ रहा है और चलता रहेगा..शायद.........................