शुक्रवार, जुलाई 26, 2013

ज्ञान की देवी को हमने आखिर धन्दे की देवी क्यों बना दिया है?

यूपी बोर्ड की मेरिट लिस्ट में इस साल इलाहबाद के कुकुरमुत्ता छाप स्कूलों और कोचिंगो के अधिकतर बच्चे छाये रहे। ये अलग बात है की बाद की प्रतियोगी परीक्षाओ में इन टापरो की हकीकत सामने आ ही जाएगी! कुछ दिनों पहले मेरा जिज्ञाषा वश संपादक कम दोस्त की हैसियत से उन बच्चो से मिलना हुआ। उनको और माहौल को देख कर लगा कही मै गलत बच्चो से तो नहीं मिल रहा हु? फिर मन में आया सरस्वती का वाश तो कही भी हो सकता है, आखिर कीचड़ में ही तो कमल खिलता है। सोचा क्यों न इश कमल को देखा ही जाये। न चाहते हुए भी मैंने उन बच्चो से कुछ सवाल पूछ ही लिये। पर अफ़सोस उनमे से कोई भी एक भी सवाल के सही जवाब नहीं दे सका। आखिर ऐसा क्यों? 

मैंने भी अपने आप से यही सवाल पुछा और इन अद्वितीय प्रतिभाओ को देख कर बाहर निकला तो आदतवश इसकी जड़ तक पहुचने के लिए निकल पड़ा। कुछ लोगो से पता किया तो मालूम चला की ये सब लक्ष्मी देवी और नक़ल के देवता की मेहरबानी है। कुछ और आगे बढ़ा तो GIC के अध्यापक महोदय मिल गये जिन्होंने इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए बताया की ये तो कुछ नहीं है। पिछले साल तो उस विद्यालय के प्रबन्धक की बच्ची भी up की मेरिट लिस्ट में आई थी जो की इनसे भी कही गयी गुजरी प्रतिभावान थी, ये सब यहाँ के अलावा सीधे आयोग से भी सेटिंग करके होता है। फिर बोले बढा भ्रस्ताचार है इस शिक्षा व्यवस्था में शिक्षा की देवी सरस्वती को लोगो ने बेच दिया है, उनसे लोग व्यापार कराने लगे है, हमसे ये कभी न होगा,,,,,,
तभी उनके मोबाइल ने जगमगाते हुए गायत्रीमंत्र का उदघोष किया। मेरा मन खुश हुआ चलो कम से कम आना तो सफल हुआ, कुछ नहीं तो आज के दौर में एक ऐसे आदर्शवादी शिक्षक से ही मुलाकात हो गयी। तभी अध्यापक महोदय ने फ़ोन पर कहा ठीक है कल आ जाओ काम हो जायेगा लेकिन हा अब से ऐसी बाते कभी फ़ोन पर मत करना, आजकल पुलिस वाले किसी भी सरीफ का नंबर सर्विश्लान्स पर डाल देते है। फिर फ़ोन काट कर वो बताने लगे की आज कल UP TET के भाषा विषय की कॉपी हमी लोगो के द्वारा हमारे विद्यालय में ही जाची जा रही है, अगर हम उसमे किसी का परोपकार कर दे तो क्या बुरा है? बेचारो की जिन्दगी सवर जाएगी, पूरी जिंदगी हमे वो दुवाए देंगे साथ ही हमे हमारी मेहनत का कुछ फल भी मिल जायेगा............ 60,000 की तनखा में आज होता ही क्या है? उनकी बाते सुनकर मुझे लगा कही वो मुझसे भी तो ये आशा नहीं लगा बैठे है की कही से एकाद TET वाले दीनदुखियो को उनसे मिलवाऊ,,,,,,
खैर रात के दस बज चुके थे,,, घर के लिए निकल पड़ा और रास्ते में सोचने लगा की ज्ञान की देवी को हमने आखिर धन्दे की देवी क्यों बना दिया है? ऐसी शिक्षा का क्या मतलब जो हमे लोगो से नजर चुराने पर विवश कर दे? मास्टर जी के आदर्श आखिर केवल दूसरो के लिए ही क्यों? ऐसे बच्चो का आखिर भविष्य क्या होगा? क्या सच में 60,000 में कुछ नहीं होता? और न जाने क्या क्या।
..........तभी गाड़ी के सामने एक पिल्लै का बच्चा आ गया और मै सड़क पर।,,,,, दुखतो बहुत हुआ पर पिल्लै से ज्यादा अपने सड़क पर आने का,,,,,,,,,!
(फोटो के कुछ अंश को जानबूझकर मैंने ब्लर किया है)

Kinjal Kumar

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