एक हिंदी मासिक पत्रिका के यात्रा सेगमेंट के लिए लिखा गया मेरा ये लेख। आशा है आपको पसंद आयेगा......!
गर्मी का मौसम है, सूरज का पृथ्वी से प्रेम अपने चरम पर है जिसकी तपन से हम और आप झुलस रहे है, हर पल गाहे बगाहे प्रभु को याद करके कह रहे है, "कुछ तो दया करो" मन बस यही करता है चल भाग चल उन वदियॊ में जहा उसकी तपन ना पहुचे। मौसम भी है दस्तूर भी, तो मैंने सोचा क्यो ना इश बार यात्रा के जरिये आपको प्रभु से मिलाने उनके ही द्वार अमरनाथ ले चलु जहा आपके तन के साथ साथ मन को भी सुकू मिले। तो आइये चलते है बाबा भोलेनाथ की नगरी.....
अमरनाथ हिन्दुओ का एक प्रमुख शिव तीर्थ स्थल है। जो की कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में १३५ किलोमीटर दूर समुद्रतल से १३,६०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। इस गुफा की लंबाई (भीतर की ओर ) १९ मीटर और चौड़ाई १६ मीटर है जबकि ऊंचाई ११ मीटर है।
इश धाम की प्रमुख विशेषता गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग निर्मित होना है। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दशर्न के लिए लाखो लोग यहां आते है। गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है जिसमे ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमे टपकने वाली हिम बूँदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस शिवलिंग का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है।श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावश्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। आश्चर्य की बात यही है की यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबिक गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाए। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पारवती जी के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं।
अमरनाथ के बारे में कई जनस्रुतिया भी प्रचलित है जैसे की इसी गुफा में माता पावर्ती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये थे। गुफा में आज भी स्रधालुओ को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिन्हें स्रधालु अमर पक्षी बताते हैं। मान्यता है वे भी अमरकथा सुनकर अमर हुए हैं। कहा जाता है की जिन स्रधालुओ को कबूतरों का जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव पावर्ती अपने प्रत्यक्ष दशर्नों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं। यह भी माना जाता है की भगवान शिव ने अर्धांगिनी पावर्ती को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमे अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन था। यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विख्यात हुई।
पूरे यात्रा पथ के बारे में कुछ विद्वानों का भी मत है की भगवान शंकर जब पावर्ती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओ को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये तमाम स्थल अब भी अमरनाथ यात्रा में आते हैं।
अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूवार्ध में एक मुसलमान गडरिये को चला था। आज भी मंदिर का चौथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिये के वंशजों को मिलता है। आश्चर्य की बात यह है की अमरनाथ गुफा एक नहीं है। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखाई देती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं। अमरनाथ पर जाने के दो रस्ते हैं। एक पहलगाम होकर और दूसरा सोनमर्ग बटलाल से। पहलगाम और बलटाल तक आप किसी भी सवारी से पहुँचें, यहाँ से आगे जाने के लिए अपने पैरों का ही इस्तेमाल करना होगा। अशक्त या वृद्धों के लिए सवारियों का प्रबंध किया जा सकता है। पहलगाम से जानेवाले रास्ते को सरल और सुविधाजनक समझा जाता है। बलटाल से अमरनाथ गुफा की दुरी केवल १४ किलोमीटर है पर यह बहुत ही दुर्गम रास्ता है और सुरक्षा की दृष्टी से भी खतरनाक है। इशिलिये सरकार इस मार्ग को सुरक्षित नहीं मानती है और अधिकतर यात्रियों को पहलगाम के रास्ते अमरनाथ जाने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन रोमांच और जोखिम लेने का शौक रखने वाले लोग इस मार्ग से यात्रा करना पसंद करते हैं। इस मार्ग से जाने वाले लोग अपने जोखिम पर यात्रा करते है। रास्ते में किसी अनहोनी के लिए भारत सरकार जिम्मेदारी नहीं लेती है।
मै जोखिम नहीं उठाता हु और आपसे भी यही आशा करता हु, क्योकि जीवन अनमोल है, पहलगाम तक जाने के लिए जम्मू-कश्मीर पयर्टन केंद्र से सरकारी बस हमेशा उपलब्ध रहती है। पहलगाम में गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से लंगर की व्यवस्था हमेशा की जाती है। तीर्थयात्रियो की पैदल यात्रा यहीं से आरंभ होती है। पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से आठ किलोमीटर कीदुरी पर है। पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते हैं। यहाँ रात्रि निवास के लिए कैंप लगाए जाते हैं। लिद्दर नदी के किनारे-किनारे पहले चरण की यह यात्रा ज्यादा किठन नहीं है। चंदनबाड़ी से १४ किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पड़ाव रहता है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक भी है। यहीं पर पिस्सू घाटी के दशर्न होते हैं। फिर उसके बाद यात्री शेषनाग पहँच कर ताजादम होते हैं। यहाँ पवर्तमालाओं के बीच नीले पानी की एक खुबसूरत झील है। यह झील करीब डेढ़ किलोमीटर लम्बाई में फैली है। मान्यताओ के अनुसार शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दशर्न देते हैं। तीर्थयात्री यहाँ रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं।
शेषनाग से अगला पड़ाव पंचतरणी आठ मील के फासले पर है। मार्ग में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे को पार करना पड़ता हैं, महागुणास चोटी से पंचतरणी तक का सारा रास्ता उतराई का है। पांच छोटी-छोटी सरिताए बहने के कारण ही इस स्थल का नाम पंचतरणी पड़ा है। यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है। ऊँचाई की वजह से ठंड भी ज्यादा होती है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से तीर्थयात्रियो को यहाँ सुरक्षा के इंतजाम करने पड़ते हैं।
अमरनाथ की गुफा यहाँ से केवल आठ किलोमीटर दूर रह जाती हैं रस्ते में बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। इसी दिन गुफा के नजदीक पहुँच कर पड़ाव डाल रात बिता सकते हैं और दुसरे दिन सुबह बाबा भोलेनाथ के वास स्थान अमरनाथ पहुच कर, उनके दर्शन कर, पूजा अर्चन कर पंचतरणी लौटा जा सकता है। यह यात्रा काफी कठिन है, लेकिन अमरनाथ की पवित्र गुफा में पहुचते ही सफ़र की सारी थकान पल भर में छू मंतर हो जाती है और मन को अद्भुत आत्मिक आनन्द की अनुभूति होती है।
आशा है आपको मेरे द्वारा करायी गयी शब्दों की ये यात्रा पसंद आई होगी और आपके मन में भी एक बार वास्तविक यात्रा करने की हसरत जरूर जगी होगी।
गर्मी का मौसम है, सूरज का पृथ्वी से प्रेम अपने चरम पर है जिसकी तपन से हम और आप झुलस रहे है, हर पल गाहे बगाहे प्रभु को याद करके कह रहे है, "कुछ तो दया करो" मन बस यही करता है चल भाग चल उन वदियॊ में जहा उसकी तपन ना पहुचे। मौसम भी है दस्तूर भी, तो मैंने सोचा क्यो ना इश बार यात्रा के जरिये आपको प्रभु से मिलाने उनके ही द्वार अमरनाथ ले चलु जहा आपके तन के साथ साथ मन को भी सुकू मिले। तो आइये चलते है बाबा भोलेनाथ की नगरी.....
अमरनाथ हिन्दुओ का एक प्रमुख शिव तीर्थ स्थल है। जो की कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में १३५ किलोमीटर दूर समुद्रतल से १३,६०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। इस गुफा की लंबाई (भीतर की ओर ) १९ मीटर और चौड़ाई १६ मीटर है जबकि ऊंचाई ११ मीटर है।
इश धाम की प्रमुख विशेषता गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग निर्मित होना है। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दशर्न के लिए लाखो लोग यहां आते है। गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है जिसमे ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमे टपकने वाली हिम बूँदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस शिवलिंग का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है।श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावश्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। आश्चर्य की बात यही है की यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबिक गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाए। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पारवती जी के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं।
अमरनाथ के बारे में कई जनस्रुतिया भी प्रचलित है जैसे की इसी गुफा में माता पावर्ती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये थे। गुफा में आज भी स्रधालुओ को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिन्हें स्रधालु अमर पक्षी बताते हैं। मान्यता है वे भी अमरकथा सुनकर अमर हुए हैं। कहा जाता है की जिन स्रधालुओ को कबूतरों का जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव पावर्ती अपने प्रत्यक्ष दशर्नों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं। यह भी माना जाता है की भगवान शिव ने अर्धांगिनी पावर्ती को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमे अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन था। यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विख्यात हुई।
पूरे यात्रा पथ के बारे में कुछ विद्वानों का भी मत है की भगवान शंकर जब पावर्ती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओ को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये तमाम स्थल अब भी अमरनाथ यात्रा में आते हैं।
अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूवार्ध में एक मुसलमान गडरिये को चला था। आज भी मंदिर का चौथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिये के वंशजों को मिलता है। आश्चर्य की बात यह है की अमरनाथ गुफा एक नहीं है। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखाई देती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं। अमरनाथ पर जाने के दो रस्ते हैं। एक पहलगाम होकर और दूसरा सोनमर्ग बटलाल से। पहलगाम और बलटाल तक आप किसी भी सवारी से पहुँचें, यहाँ से आगे जाने के लिए अपने पैरों का ही इस्तेमाल करना होगा। अशक्त या वृद्धों के लिए सवारियों का प्रबंध किया जा सकता है। पहलगाम से जानेवाले रास्ते को सरल और सुविधाजनक समझा जाता है। बलटाल से अमरनाथ गुफा की दुरी केवल १४ किलोमीटर है पर यह बहुत ही दुर्गम रास्ता है और सुरक्षा की दृष्टी से भी खतरनाक है। इशिलिये सरकार इस मार्ग को सुरक्षित नहीं मानती है और अधिकतर यात्रियों को पहलगाम के रास्ते अमरनाथ जाने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन रोमांच और जोखिम लेने का शौक रखने वाले लोग इस मार्ग से यात्रा करना पसंद करते हैं। इस मार्ग से जाने वाले लोग अपने जोखिम पर यात्रा करते है। रास्ते में किसी अनहोनी के लिए भारत सरकार जिम्मेदारी नहीं लेती है।
मै जोखिम नहीं उठाता हु और आपसे भी यही आशा करता हु, क्योकि जीवन अनमोल है, पहलगाम तक जाने के लिए जम्मू-कश्मीर पयर्टन केंद्र से सरकारी बस हमेशा उपलब्ध रहती है। पहलगाम में गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से लंगर की व्यवस्था हमेशा की जाती है। तीर्थयात्रियो की पैदल यात्रा यहीं से आरंभ होती है। पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से आठ किलोमीटर कीदुरी पर है। पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते हैं। यहाँ रात्रि निवास के लिए कैंप लगाए जाते हैं। लिद्दर नदी के किनारे-किनारे पहले चरण की यह यात्रा ज्यादा किठन नहीं है। चंदनबाड़ी से १४ किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पड़ाव रहता है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक भी है। यहीं पर पिस्सू घाटी के दशर्न होते हैं। फिर उसके बाद यात्री शेषनाग पहँच कर ताजादम होते हैं। यहाँ पवर्तमालाओं के बीच नीले पानी की एक खुबसूरत झील है। यह झील करीब डेढ़ किलोमीटर लम्बाई में फैली है। मान्यताओ के अनुसार शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दशर्न देते हैं। तीर्थयात्री यहाँ रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं।
शेषनाग से अगला पड़ाव पंचतरणी आठ मील के फासले पर है। मार्ग में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे को पार करना पड़ता हैं, महागुणास चोटी से पंचतरणी तक का सारा रास्ता उतराई का है। पांच छोटी-छोटी सरिताए बहने के कारण ही इस स्थल का नाम पंचतरणी पड़ा है। यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है। ऊँचाई की वजह से ठंड भी ज्यादा होती है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से तीर्थयात्रियो को यहाँ सुरक्षा के इंतजाम करने पड़ते हैं।
अमरनाथ की गुफा यहाँ से केवल आठ किलोमीटर दूर रह जाती हैं रस्ते में बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। इसी दिन गुफा के नजदीक पहुँच कर पड़ाव डाल रात बिता सकते हैं और दुसरे दिन सुबह बाबा भोलेनाथ के वास स्थान अमरनाथ पहुच कर, उनके दर्शन कर, पूजा अर्चन कर पंचतरणी लौटा जा सकता है। यह यात्रा काफी कठिन है, लेकिन अमरनाथ की पवित्र गुफा में पहुचते ही सफ़र की सारी थकान पल भर में छू मंतर हो जाती है और मन को अद्भुत आत्मिक आनन्द की अनुभूति होती है।
आशा है आपको मेरे द्वारा करायी गयी शब्दों की ये यात्रा पसंद आई होगी और आपके मन में भी एक बार वास्तविक यात्रा करने की हसरत जरूर जगी होगी।
apki sabdik yatra achchi lagi kintu paidal yatra chandan badi se sur ki ja saki hai chandabani tak khub sadhan jate hai
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