बुधवार, दिसंबर 29, 2010
bachpan ka safar
मुझको परियों का नगर याद आया
कोई पत्ता हिले न जिसके बिना
रब वहीं शाम-ओ-सहर याद आया
इतना शातिर वो हुआ है कैसे
है सियासत का असर याद आया
रोज़ क्यूँ सुर्ख़ियों में रहता है
है यही उसका हुनर, याद आया
जब कोई आस ही बाक़ी न बची
मुझको बस तेरा ही दर याद आया
जो नहीं था कभी मेरा अपना
क्यूँ मुझे आज वो घर याद आया
उम्र के इस पड़ाव पे आकर
क्यूँ जुदा होने का डर याद आया
माँ ने रख्खा था हाथ जाते हुए
फिर वही दीद-ऐ-तर याद आया
जिसकी छाया तले ‘किरण’ थे सब
घर के आँगन का शजर याद आया
मंगलवार, दिसंबर 21, 2010
गुरुवार, अक्तूबर 21, 2010
एक सुहाना...सफर है जिंदगी
यह सही है कि ज़िंदगी में दुख-तकलीफों और परेशानियों से मुठभेड़ होती ही रहती है। ऐसा दुनिया के हर इंसान के साथ होता है। हर आदमी की अपनी-अपनी परेशानियाँ होती हैं। जब तक ये जीवन है तब तक ये मुसीबतें तो रहेंगी ही। तो फिर क्या करें? चलिए जानते हैं।
उनकी जगह आप होते तो...
लोग अक्सर यही सोचकर परेशान होते हैं कि ये मुसीबतें हमारे ही हिस्से में क्यों? बेहतर होगा यदि यह सोचा जाए कि हमारी जगह अगर कोई और व्यक्ति होता तो वह ऐसे हालात में क्या करता? ऐसा सोचने पर आपकी कल्पना में ऐसे दृश्य उभरने लगेंगे जिनमें उस व्यक्ति ने उस मुश्किल का कोई न कोई हल निकाल लिया होगा। ऐसा सोचने से आपको बल मिलेगा तब आप यह सोच सकते हैं कि अगर वह व्यक्ति इस मुसीबत से निकल सका है तो हम क्यों नहीं निकल सकते।
बी ए ग्रेट वॉरियर
अगर हम अपना नजरिया ऐसा बना लें कि हम सैनिक हैं और हमें परेशानियों, मुसीबतों और मुश्किलों रूपी दुश्मनों को खत्म करना है, तो हमारी ज़िंदगी बहुत हद तक बदल सकती है। अपने पर्सनालिटी में मुसीबतों से लड़ने और उन पर विजय पाने की भावना बना लें। तब हम कठिनाइयों से भागेंगे नहीं बल्कि डटकर उनका मुकाबला करते हुए उन पर जीत हासिल करेंगे।
मुश्किलें तो आएँगी
अगर प्रॉब्लम्स को एक्सेप्ट कर लिया जाए तो लाइफ की आधी से ज्यादा प्रॉब्लम्स तो यूँ ही सॉल्व हो जाएँगी। अजीब हैं ना... लेकिन वाकई में अगर यह सोचा जाए कि प्रॉब्लम्स को तो रहना ही है और इनकी मौजूदगी में ही मंजिल पाना है तो, हमारे सोचने का तरीका काफी हद तक ऑप्टिमिस्ट हो जाएगा।
मुश्किलों को अलग-अलग करके हल करें
अपनी सारी मुश्किलों के बारे में एक साथ सोचेंगे तो इससे मुश्किलें और भी बढ़ने लगेंगी, इसलिए इन्हें एक-एक करके हल करने की कोशिश कीजिए। ऐसा करने से अपनी कठिनाइयों का बेहतर समाधान आप पा सकेंगे।
प्रॉब्लम्स को हौवा न बनने दें
प्रॉब्लम्स के आने से पहले ही उनके बारे में सोच-सोच कर उन्हें बड़ा वनने का मौका न दें। आने वाली मुसीबतों से बचने के लिए पहले से ही कोई उपाय सोचकर रखना कोई गलत बात नहीं, पर मुसीबतों के आने से पहले ही हरदम उनके बारे में सोच-सोच कर अपने आज को बिगाड़ लेना भी ठीक नहीं। आने वाली मुसीबतों के बारे में यह सोचिए कि जब मुश्किल आएँगी, तब देखा जाएगा, अभी से उनकी चिंता क्यों करें? हो सकता है कि वे मुसीबतें आपके जीवन में कभी आएँ ही नहीं।
तो आइए अपनी परेशानी के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलें। दृष्टिकोण बदलेगा तो जीवन भी बदलेगा।
सोमवार, अक्तूबर 18, 2010
एविएशन इंडस्ट्री और करियर के ऑप्शंस
एविएशन इंडस्ट्री के क्षेत्र में आज करियर के कई ऑप्शंस खुले हैं। युवाओं के पसंदीदा क्षेत्रों में एविएशन इंडस्ट्री बहुत लोकप्रिय विकल्प माना जाता है। लड़कों में जहाँ एरोनॉटिकल इंजीनियर बनने की चाह रहती है वहीं लड़कियों में एयर होस्टेज बनने का क्रेज कायम है। लेकिन इन दोनों के अलावा भी एविएशन इंडस्ट्री में कई ऐसे अन्य सेक्टर्स भी हैं जिनमें आप करियर की राह ढूँढ सकते हैं। एयरोनॉटिकल इंजीनियर्स : हवाई बेड़ों के रख-रखाव और मरम्मत हेतु एयरोनॉटिकल इंजीनियर्स की नियुक्ति करना इन एयरलाइंस की मजबूरी है। बीई, बीटेक डिग्री धारक इन इंजीनियरों को अनुभव और काबिलियत के आधार पर मोटा वेतन दिया जाता है। एयर होस्टेज : हवाई यात्रा को सुखद, अरामदायक और तनावरहित बनाने के लिए खूबसूरत और अपने कार्य में दक्ष युवतियों को एयरहोस्टेज के रूप में ये एयरलाइंस कंपनियां नियुक्त करती हैं। प्रायः ग्रेजुएट और हॉस्पीटेलिटी इंडस्ट्री से संबंधित ट्रेनिंग प्राप्त युवतियों को इसके लिए चुना जाता है।
कस्टमर केयर : आज के दौर में ग्राहकों की संतुष्टि का प्रत्येक कारोबारी कंपनी के लिए अतिरिक्त महत्व है। यही कारण है कि कस्टमर फ्रेंडली होने के अलावा ग्राहकों की असुविधाओं को न्यूनतम करते हुए आरामदायक हवाई यात्रा सुनिश्चित करने के क्रम में इन कस्टमर सपोर्ट एवजीन्यूटिव को बड़े पैमाने पर प्रत्येक एयरलाइंस द्वारा नियुक्त किया जाता है।
टिकट रिजर्वेशन : प्रत्येक बड़े शहर और एयरपोर्ट पर इंटरनेट टेलीकॉलिंग अथवा डायरेक्ट सेलिंग हेतु इन एयरलाइंसों द्वारा एयर टिकटों को बिक्री हेतु काउंटर बनाए जाते हैं इनमें ग्रेजुएट युवाओं को प्राथमिकता दी जाती है।
पायलट : निस्संदेह एयर सेवा में यात्रियों को गंतव्य तक सही सलामत पहुंचाने का सबसे बड़ा दायित्व पायलट के कंधों पर होता है। इसलिए ट्रेंड और उड़ान का खासा अनुभव रखने वाले पायलेटों को ये एयरलाइंस आकर्षक वेतन पैकेज पर नियुक्त करती है। इनके अलावा एकाउंट्स, एडमिनिस्ट्रेशन, फ्लाइट स्वीवर्ड, मार्केटिंग, पब्लिक रिलेशंस, कैटरिंग तथा टैक्नीकल विभागों के लिए बड़ी संख्या में टेण्ड युवाओं को एयर लाइंस कंपनियों द्वारा नियुक्त किया जाता है। एविएशन इंडस्ट्री में काम करने का एक बड़ा फायदा मुफ्त में देश-विदेश की सैर, फाइव स्टार होटलों में रहने का मौका तथा विश्व की नामी हस्तियों से मिलने के अवसर के रूप में भी इन कर्मियों को बोनस के रूप में मिलता है।
शुक्रवार, अक्तूबर 15, 2010
असफलता भी सीखाती है
गुरुवार, अक्तूबर 07, 2010
हिन्दुत्व के प्रमुख तत्व
रविवार, अक्तूबर 03, 2010
अयोध्या वीवाद और एक दलीत कारसेवक...
अयोध्या में राम मंदिर पर फ़ैसले की घड़ी नज़दीक आई तो उसको याद आया वो भी एक हिंदू कारसेवक था और मंदिर के लिए अयोध्या तक गया था.
मगर अब वो महज़ एक दलित है, तब अयोध्या में विवादित ढांचा टूटा था, लेकिन विश्व हिंदू परिषद् के सक्रिय कार्यकर्ता रहे जयपुर ज़िले के चकवड़ा गांव के हरिशंकर बेरवा अपने गाँव लौटे और जो कुछ देखा उससे उनका दिल टूट गया.
उन्हें सहसा याद दिलाया गया कि वो महज़ एक दलित हैं, वो हिंदू तो हैं, मगर दर्जे से दोयम हैं.
इसीलिए टूटे हुए दिल के हरिशंकर कहते है, '' फिर मंदिर के लिए कार सेवा का आव्हान हुआ तो वो ख़ुद तो क्या कोई भी दलित अयोध्या का रुख़ नहीं करेगा.''
हरिशंकर कारसेवक के रूप में चकवड़ा से गए कोई 10 लोगों के जत्थे में अकेले दलित थे.
वो कहने लगे,'' हम वहाँ मर भी सकते थे, गोलियाँ चलीं कई लोग ज़ख़्मी हुए थे, पकड़े गए तो 15 दिन बुलंदशहर जेल में भी रहे, तब बताया गया कि हम सब हिंदू हैं, न कोई ऊंच है न नीच. पर ये सब फ़रेब था.''
हरिशंकर की ज़िंदगी में तब तूफ़ान आया जब गाँव के साझा तालाब में दलितों ने सदियों पुरानी उस परंपरा को बहुत सरल भाव से तोड़ने का प्रयास किया जिसमें दलित के लिए अलग घाट बना हुआ था.
उनका कहना था, " उस दिन 'सब हिंदू बराबर है' की मानस पर अंकित तस्वीर टुकड़े टुकड़े हो गई जब हम पर जुर्माना लगाया गया, अपमानित किया गया, हमले के लिए हिंदुओं की भीड़ जमा हुई और तालाब में दलितों के घाट से अलग पानी लेने पर गंभीर परिणामों की चेतावनी दी गई."
"उस दिन मेरा मन बार-बार ये ही पूछता रहा क्या हम हिंदू नहीं है? अगर हिंदू हैं तो फिर ये सलूक क्यों?" ये सवाल उठाते हुए हरिशंकर के चेहरे पर कई भाव चढे़ उतरे.
वो कहने लगे, ''एक विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता के नाते मैं अभिभूत था. लगा अभी साधू संत आएंगे, अभी प्रवीण तोगड़िया जी आएंगे. हम उन तक गए, गुहार भी की. मगर दलित के लिए कौन बोलता? क्योंकि वो कहने के लिए हिंदू हैं.''
कभी हरिशंकर 'सौगंध राम की खाते हैं' के नारे लगाते थे, अब उनके घर में बने एक संकुचित से पूजा घर में राजस्थान के लोक देवता रामदेव, गौतम बुद्ध और अम्बेडकर सबसे बड़े भगवान हैं.
मैंने पूछा आरएसएस से कब से जुड़े हो? वो मुझे अतीत में ले गए, '' आरएसएस में बचपन से ही जाना शुरू किया. वहां हमें बताया गया कि पूरे समाज को समरस बनाना है. मुझे ये ठीक लगा. फिर मंदिर का मुद्दा आया. हमें विहिप ने बताया कि अपने हिंदुओं के मंदिर पर मुसलमानों ने क़ब्ज़ा कर लिया, उसे मुक्त कराना है. हम ये ही सोचकर गए कि सब हिंदू सामान है. सब भाई है.''
फिर ऐसा क्या हुआ कि वो अब विरोध में खड़े है.
बहका दिया है...
वो सिर्फ़ हिंदू-मुसलमानों की बात करते हैं. मगर जब दलित के साथ ज़ुल्म की बात आती है तो वो चुप हो जाते हैं.
हरीशंकर, चकवड़ा, जयपुर
हरिशंकर कहते हैं, '' जब तालाब से पानी की बात आई तो मैंने इनके व्यवहार में फ़र्क़ देखा. मैं विहिप के नेताओं के पास गया कि दलितों के साथ बुरा सलूक हो रहा है. मगर उन्होंने कोई रुचि नहीं ली. दलितों के साथ क़दम क़दम पर भेदभाव होता है. उन्हें मंदिर में नहीं जाने दिया जाता, उनकी शादियों में बारात पर हमले होते है. विवाह में बैंड बाजे नहीं बजाने देते. ये बात कई बार मैंने विहिप की बैठकों में उठाई. पर किसी ने रूचि नहीं ली.''
वो कहते हैं, '' वो सिर्फ़ हिंदू-मुसलमानों की बात करते हैं. मगर जब दलित के साथ ज़ुल्म की बात आती है तो वो चुप हो जाते हैं. हम पर विपत्ति आई तो गांव में विहिप समर्थक 50 लोग थे या तो वे ख़ामोश थे या भागीदार थे. मैंने विहिप वालों से कहा ये ठीक नहीं है. हम हिंदू धर्म से अलग हो जाएंगे.''
दूसरी ओर हिंदू संगठन कहते हैं कि इन दलितों को किसी ने बहका दिया है.
साधु-संत और धर्मग्रंथ कहते हैं कि न कोई ऊँचा है न कोई नीचा 'हरी को भजे सो हरी का होय.' मगर ये शायद ज़िंदगी का यथार्थ नहीं है.
न जाने क्यों जब भी कोई दलित मंदिर की देहरी चढ़ता है या फिर पोखर, तालाब, और कुएँ पर प्यास बुझाने के लिए हाथ बढ़ाता है, उसे उसका सामाजिक दर्जा याद दिलाया जाता है.
पर क्या आस्था और प्यास को ऊंच नीच में बांटा जा सकता है.