सोमवार, अप्रैल 14, 2014

काश उन्होंने इतना अहंकार न दिखाया होता। काश उन्होंने इन शब्दो को कभी सुना या पढ़ा होता कि "निस्चित मतभेद, मनमुटाव, घमंड अपने दरमयां रखो लेकिन ऐसा भी न हो कि भविष्य में कभी लौटना पड़े तो देख कर मुस्कुरा भी न सको"

29 दिसम्बर 2013 को मनीष सिशोदिया जी का एक पोस्ट फेसबुक पर देखने के बाद मेरे मन में कुछ विचार आ रहे थे जिसे मैंने उस समय अपने वाल पर शेयर किया था. आज वाल को चेक करते हुए ये मुझे फिर से दिखा तो सोचा क्यों न इसे अपने ब्लॉग पर भी डालु। पढ़िए और.……………


मै जब भी कभी एकांत में बैठता हु तो न चाहते हुए भी कई तरह के सवालो से लड़ते हुए उनके जवाब के लिए मन के समुन्दर में डूब कर गोते लगाने लगता हु, हल भी ढूँढता हु, पर..... सवाल के बदले में एक और नया सवाल जन्म ले लेता है और मै फिर गोते लगाने लगता हु.…! खैर एक सवाल अभी कुछ देर पहले मनीष जी का ये पोस्ट देखकर मन में उठने लगा. कि आखिर लोग इतने अहंकारी कैसे हो जाते है? आखिर लोगो को घमंड किस बात का होता है? जब अहंकार ब्रम्हा, विष्णु, महेश, रावण, इंद्रा तक का नहीं रहा तो फिर हम और आप कौन है? ये श्रिष्टि का अटल सत्य है कि- दिन सबके आते है. समय हमेशा बदलता है. अब वो चाहे किसी भी रूप में बदले, जिसने समय के साथ खुद को अहंकार से दूर रख कर सकारात्मक रूप में बदला वो अमर हो गया और जिसने इसका उल्टा किया वो……………आप खुद समझदार है …। काश उन्होंने इतना अहंकार न दिखाया होता। काश उन्होंने इन शब्दो को कभी सुना या पढ़ा होता कि "निस्चित मतभेद, मनमुटाव, घमंड अपने दरमयां रखो लेकिन ऐसा भी न हो कि भविष्य में कभी लौटना पड़े तो देख कर मुस्कुरा भी न सको" चलते-चलते यही कामना कि, आज संतोष जहा भी है भगवान् उसे शांति दे।
आज अगर संतोष होती तो शायद बगल की सीट पर बैठी होती. सचिवालय में कदम रखते वक्त आज बहुत याद आई संतोष.... दो साल पहले मुझे और संतोष को इसी सचिवालय से बाहर निकलवा कर फिंकवाया था, पूर्व मुख्यमंत्री और उनके सचिव पी. के. त्रिपाठी ने..... मैं और संतोष राशन की जगह कैश दिए जाने की स्कीम पर चर्चा करने आये थे... विरोध करते ही भडक गई थीं मैडम... पहले पुलिस बुलाकर मीटिंग से बाहर निकलवा दिया... और फिर सचिवालय से ही बाहर निकलवा दिया. इसके बाद दो साल तक यहां आना ही नहीं हुआ.... सचिवालय की बिल्डिंग आज भी वही है लेकिऩ, आज जनता ने उन मैडम को ही सचिवालय से बाहर निकाल दिया है...

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