पिछले
एक हफ्ते के अंदर मेरी जिंदगी के आस-पास इतनी जल्दी-जल्दी इतने रंग बदले
जिनकी मैंने संभवत कामना नहीं की थी। सब कुछ बड़े अच्छे से चल रहा था। इवेंट
कंपनी का काम भी बढ़ चुका था। पर शायद सोने के कुंदन बनने में अभी देर है।
इलाहबाद की कोचिंगो के इवेंट हमारे लगातार चल ही रहे है (जिसे पूरी तरह अवधेश देख रहे थे) चुनाव वाले इवेंट का मुख्य नामांकन वाला काम अच्छे से बीत चुका था (इशे भी अवधेश देख रहे थे) की इशी बीच १६ अप्रैल को अवधेश के पिता जी की तबीयत ख़राब होती है। १७ को उन्हें नाजरेथ में एडमिट कराते है। उनकी तबीयत में सुधार होने लगता है, अवधेश भी वापस काम पर लग जाते है। हम २० तारीख के इवेंट (उत्तर-प्रदेश के लखनऊ मंडल के एक शिक्षक विधायक के सम्मान) की तैयारी में लग जाते है। सब कुछ ठीक चल ही रहा होता है की २० को सुबह अवधेश फ़ोन करते है और बताते है की पिता जी को हॉस्पिटल में ही हार्ट की कुछ प्रॉब्लम हुई है मै कमरे पर आ गया हु जब तक मै हॉस्पिटल में पहुचता हु आप वहा तुरंत चले जाये, उन्हें ICU में शिफ्ट किया जा रहा है। मै तुरंत पहुचता हु और देखते ही देखते कुछ ही पलो में उनकी मृत्यु हो जाती है। (२० का इवेंट हमारी तरफ से कैंसिल हो जाता है) उनके सारे क्रिया कर्म कराने के बाद रात में मै अपने दो साथियो के साथ आजम खा साहब के रामपुर जिले के लिए निकल लेता हु क्योंकि इश इवेंट को हम चाह कर भी कैंसिल नहीं कर सकते थे। (इसमें अवधेश और अविनाश को भी जाना था पर परिस्थितिया अब कुछ और थी)
२१-२२ अप्रैल की रात में हमारा रामपुर में एक इवेंट लगा था। खैर सुबह हम लखनऊ पहुँचते है और वहा से रामपुर के लिए कोलकत्ता जम्मूतवी ट्रेन में सवार होते है। अभी शाहजहाँपुर से आगे बढ़ा रहता हु की दूसरे ट्रैक पर एक लड़के और लड़की का एक्सीडेंट हुआ दिखता है, जिसमे लड़की मर चुकी रहती है और लड़का भी सांसे गिन रहा होता है, पूछने पर पता चलता है की दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे पर समाज के दबाव को नहीं झेल पाये और दोनों ने आत्महत्या के लिए चलती ट्रेन से छलांग लगा दी।
अगले दिन इवेंट ख़त्म कर वापसी के लिए सुबह हम रामपुर स्टेशन पहुँचते है और राज्यरानी ट्रेन में सवार होते ही है की एकाएक दूसरे प्लेटफार्म पर अपनी ही उम्र के एक इंसान की लावारिश लाश को देख कर मन काप उठता है, पता नहीं वो कहाँ से आया रहता है कहाँ को जाने वाला होता है उसको देख कर ऐसा लग रहा था मनो उसे मरे १०-१२ घंटे से ऊपर हो चुके हो, शरीर कड़ी हो चुकी रहती है चारो तरफ उसके शरीर का ब्लॅड और पानी फैला रहता है। फिर भी उसे कोई पूछता नहीं रहता है।
इलाहबाद की कोचिंगो के इवेंट हमारे लगातार चल ही रहे है (जिसे पूरी तरह अवधेश देख रहे थे) चुनाव वाले इवेंट का मुख्य नामांकन वाला काम अच्छे से बीत चुका था (इशे भी अवधेश देख रहे थे) की इशी बीच १६ अप्रैल को अवधेश के पिता जी की तबीयत ख़राब होती है। १७ को उन्हें नाजरेथ में एडमिट कराते है। उनकी तबीयत में सुधार होने लगता है, अवधेश भी वापस काम पर लग जाते है। हम २० तारीख के इवेंट (उत्तर-प्रदेश के लखनऊ मंडल के एक शिक्षक विधायक के सम्मान) की तैयारी में लग जाते है। सब कुछ ठीक चल ही रहा होता है की २० को सुबह अवधेश फ़ोन करते है और बताते है की पिता जी को हॉस्पिटल में ही हार्ट की कुछ प्रॉब्लम हुई है मै कमरे पर आ गया हु जब तक मै हॉस्पिटल में पहुचता हु आप वहा तुरंत चले जाये, उन्हें ICU में शिफ्ट किया जा रहा है। मै तुरंत पहुचता हु और देखते ही देखते कुछ ही पलो में उनकी मृत्यु हो जाती है। (२० का इवेंट हमारी तरफ से कैंसिल हो जाता है) उनके सारे क्रिया कर्म कराने के बाद रात में मै अपने दो साथियो के साथ आजम खा साहब के रामपुर जिले के लिए निकल लेता हु क्योंकि इश इवेंट को हम चाह कर भी कैंसिल नहीं कर सकते थे। (इसमें अवधेश और अविनाश को भी जाना था पर परिस्थितिया अब कुछ और थी)
२१-२२ अप्रैल की रात में हमारा रामपुर में एक इवेंट लगा था। खैर सुबह हम लखनऊ पहुँचते है और वहा से रामपुर के लिए कोलकत्ता जम्मूतवी ट्रेन में सवार होते है। अभी शाहजहाँपुर से आगे बढ़ा रहता हु की दूसरे ट्रैक पर एक लड़के और लड़की का एक्सीडेंट हुआ दिखता है, जिसमे लड़की मर चुकी रहती है और लड़का भी सांसे गिन रहा होता है, पूछने पर पता चलता है की दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे पर समाज के दबाव को नहीं झेल पाये और दोनों ने आत्महत्या के लिए चलती ट्रेन से छलांग लगा दी।
अगले दिन इवेंट ख़त्म कर वापसी के लिए सुबह हम रामपुर स्टेशन पहुँचते है और राज्यरानी ट्रेन में सवार होते ही है की एकाएक दूसरे प्लेटफार्म पर अपनी ही उम्र के एक इंसान की लावारिश लाश को देख कर मन काप उठता है, पता नहीं वो कहाँ से आया रहता है कहाँ को जाने वाला होता है उसको देख कर ऐसा लग रहा था मनो उसे मरे १०-१२ घंटे से ऊपर हो चुके हो, शरीर कड़ी हो चुकी रहती है चारो तरफ उसके शरीर का ब्लॅड और पानी फैला रहता है। फिर भी उसे कोई पूछता नहीं रहता है।
ट्रेन चल पड़ती है, हम हरदोई से पहले ही रहते है की
दूसरे ट्रैक पर एक लड़की और एक बच्चे की ट्रेन से कटी लाश दिखती है रूह फिर
काप उठती है। पूछने पर पता चलता है की एक ट्रैक पर माल गाड़ी जा रही होती है
फाटक गिरा रहता है फिर भी न जाने वो किस जल्दी में फाटक पार कर दूसरे
ट्रैक पर आ खड़े हो जाते है और मालगाड़ी के ख़त्म होने का इन्तेजार करने लगते
है, मालगाड़ी के शोर में उन्हें कुछ सुनाई नहीं दे रहा होता है की तभी दूसरे
ट्रैक पर कोइ ट्रेन आ जाती है और उन्हें काटते हुए चली जाती है।
कैसे भी करके रात में घर पहुँचता हु थके होने के कारण तुरंत नीद आ जाती है। पर आज जब मै बैठ कर इन सभी घटनाओ का निष्कर्ष निकाल रहा हु तो कई तरह के परिणामो पर पहुंच रहा हु। पल में जिंदगी कैसे बदल जाती है ये इन घटनाओ से निकल कर मेरे सामने आ रहा है। अगले पल क्या होने वाला है ये कोई नहीं जान सकता। ऊपर वाले के आगे किसी का जोर नहीं चल सकता। कर्म करने के बाद भी सारी योजनाये बनी की बनी रह जाती है फल देता ऊपर वाला ही है फिर हम और आप मेरा तेरा में क्यों लगे रहते है?
क्यों जाने अनजाने एक दूसरे का दिल दुखाते, उन्हें नुक्सान पहुचाने का हर एक प्रयास करते है? जहां जिंदगी का खुद कोई भरोसा नहीं है की अगले पल क्या होने वाला है वहा हम दुश्मन बनाते चलते है उनकी बद्दुआओ को इकठ्ठा कर उसका भार उठाते चलते है? जब चार दिन की ही जिंदगी है तो क्यों न हम कम से कम कुछ ऐसा करते चले की दुआ देने वाले न सही कम से कम बद्दुआ देने वाले भी न रहे।
कही प्रकृति और परमेश्वर मुझे कुछ समझाना तो नहीं चाह रहे है? निश्चित ही मैंने भी जाने अनजाने कइयों के दिल दुखाये होंगे, गलतिया मुझसे भी हुई होंगी आखिर मै भी एक इंसान हु। पर अब वक़्त ने शायद मुझे खुद को बदलने का एक मौका दिया है तो क्यों न मै इस मौके का फायदा उठाऊ? आखिर जब जागो तभी सवेरा। इस दिशा में कदम अभी से बढ़ाता हु।
मै उन सभी जाने अनजाने लोगो से माफ़ी मागता हु जिन्हे कही से भी लगता हो की मैंने उनका दिल दुखाया है या उनका नुकसान किया है। आपसे मेरा एक विनम्र अनुरोध ये भी है की मुझे मेरी गलतियों को सुधारने में मेरी मदद करे। "किंजल"
कैसे भी करके रात में घर पहुँचता हु थके होने के कारण तुरंत नीद आ जाती है। पर आज जब मै बैठ कर इन सभी घटनाओ का निष्कर्ष निकाल रहा हु तो कई तरह के परिणामो पर पहुंच रहा हु। पल में जिंदगी कैसे बदल जाती है ये इन घटनाओ से निकल कर मेरे सामने आ रहा है। अगले पल क्या होने वाला है ये कोई नहीं जान सकता। ऊपर वाले के आगे किसी का जोर नहीं चल सकता। कर्म करने के बाद भी सारी योजनाये बनी की बनी रह जाती है फल देता ऊपर वाला ही है फिर हम और आप मेरा तेरा में क्यों लगे रहते है?
क्यों जाने अनजाने एक दूसरे का दिल दुखाते, उन्हें नुक्सान पहुचाने का हर एक प्रयास करते है? जहां जिंदगी का खुद कोई भरोसा नहीं है की अगले पल क्या होने वाला है वहा हम दुश्मन बनाते चलते है उनकी बद्दुआओ को इकठ्ठा कर उसका भार उठाते चलते है? जब चार दिन की ही जिंदगी है तो क्यों न हम कम से कम कुछ ऐसा करते चले की दुआ देने वाले न सही कम से कम बद्दुआ देने वाले भी न रहे।
कही प्रकृति और परमेश्वर मुझे कुछ समझाना तो नहीं चाह रहे है? निश्चित ही मैंने भी जाने अनजाने कइयों के दिल दुखाये होंगे, गलतिया मुझसे भी हुई होंगी आखिर मै भी एक इंसान हु। पर अब वक़्त ने शायद मुझे खुद को बदलने का एक मौका दिया है तो क्यों न मै इस मौके का फायदा उठाऊ? आखिर जब जागो तभी सवेरा। इस दिशा में कदम अभी से बढ़ाता हु।
मै उन सभी जाने अनजाने लोगो से माफ़ी मागता हु जिन्हे कही से भी लगता हो की मैंने उनका दिल दुखाया है या उनका नुकसान किया है। आपसे मेरा एक विनम्र अनुरोध ये भी है की मुझे मेरी गलतियों को सुधारने में मेरी मदद करे। "किंजल"