आज कल हम लोग एक पत्रिका
प्रयाग गौरव से जुड़ कर कार्य कर रहे थे उसके प्रबंध संपादक अनूप त्रिपाठी
जी जब हमसे मिले थे और साथ कार्य करने का प्रस्ताव रखा था तो हम उनके
विचारो से प्रभावित हुए थे और लगा की हा ये भीड़ से अलग कुछ करना चाहते है
हम उनके साथ जुड़ गए। पर कल जब उस मेहनत का फल निकलने
की बारी आई तो लगा की यहाँ पर तो अनूप जी से भी बड़े धुरंधर बैठे हुए है जो
उनकी सोच और शक्ति को आगे नहीं बढ़ने दे रहे है फिर हम क्या थे। अनूप जी को
भी न चाहते हुए भी उन कार्यो को करना पद रहा है जो वो नहीं करना चाहते थे।
कल उनके साथ के कुछ लोग मुझे नसीहत देने लगे की किंजल तुम्ह लोगो को काम
करना नहीं आता है
ऐसे चलोगे तो काम नहीं कर पाओगेअ मुझे भी लगा की हा वो सही कह रहे है की
मुझे काम करना नहीं आता है क्योकि चिरागन कभी दबाव में काम नहीं करता है।
कभी चाटुकारिता नहीं करता है क्योकि हमने सोच रखा है की देश सबसे पहले फिर
चिरागन फिर हम। और शायद इशी का परिणाम है जो हमे आपका इतना प्यार मिला है
की फेसबुक पर हमारे बारह हजार से अधिक फोलोवर है, और हमारे ब्लॉग को हर
महीने आप जैसे तीस हजार से अधिक लोग देखते है।
अब आगे क्या कहु बहुत सारी बाते है,,,, फिर कभी जब आराम से बैठूँगा तो लिखूंगा अभी तो बस मन की भड़ास निकालनी थी जो निकल गयी। खैर इस भड़ास के साथ केवल यही नहीं निकला कुछ अच्छी बाते भी निकली मसलन अपनी इस एक तस्वीर को देख कर कुछ ये शब्दभी जो शायद आपको भी पसंद आये।
अब आगे क्या कहु बहुत सारी बाते है,,,, फिर कभी जब आराम से बैठूँगा तो लिखूंगा अभी तो बस मन की भड़ास निकालनी थी जो निकल गयी। खैर इस भड़ास के साथ केवल यही नहीं निकला कुछ अच्छी बाते भी निकली मसलन अपनी इस एक तस्वीर को देख कर कुछ ये शब्दभी जो शायद आपको भी पसंद आये।
हमने भी सोचा था, अब उनसे नजरे न मिलायेंगे हम,
पर क्या करते,,,,, इस बेचारे दिल ने, बड़ी मासूमियत में फ़रमाया हमसे,
जो नजरे न मिलोगे तुम, बताओ कहा से धड़क पाएंगे हम? [किंजल]
पर क्या करते,,,,, इस बेचारे दिल ने, बड़ी मासूमियत में फ़रमाया हमसे,
जो नजरे न मिलोगे तुम, बताओ कहा से धड़क पाएंगे हम? [किंजल]