शनिवार, दिसंबर 08, 2012

कब हम सीखेंगे? क्योकि.... "इतिहास अपने को दोहराता है"


गंगा घाट पर अर्ध्य देती महिला 

किसी भी श्रृष्टि की रचनात्मकता के लिए जीवन जरूरी है और जीवन के लिए जल! इतिहास के झरोखों में हम पलट कर देखे तो, हमे निश्चित यही दिखेगा की जितनी भी सभ्यताए निकली, पनपी, प्राचीन या आधुनिक नगर बसे सब किसी न किसी गतिमान जल स्त्रोत के समीप ही बसे। इन गतिमान जल स्त्रोतों में जो मुख्यतः थी वो हमारी नदिया ही थी। हर नदी ने ना जाने कितनो को जीवन दिया, कितनो को बसाया, उजाडा। अपने आचल में समेटे हुए ना जाने कितनी पीढियों सदियों को गुजरते देखा। कभी बच्चे के जन्म के लिए माओ को मन्नत मागते देखा तो कभी उसी बच्चे के जन्म पे महिलाओं को सोहर गाते। बच्चे की प्राप्ति के बाद भेट स्वरुप बालो को चढाते देखा तो उसीके कुशल क्षेम के लिए नदी के अन्दर समाहित होकर उगते और डूबते सूरज को अर्ध्य देते भी। बच्चा जब किशोरावस्था में पंहुचा तो अपने तट पर बसे गुरुकुलो, स्कुलो में कुशल व्यक्तित्व को पाने के लिए शिक्षा का भिक्षु बनते देखा तो थोडा बड़े होने पर अपने ही तट पर बच्चे का जनेव संस्कार भी होते देखा। जनेव के बाद उसके विवाह संस्कार में भी नदी ने खुद को प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से समाहित देखा। विवाह के उपरांत नवयुगल जोड़े को खुद के समीप आकर अब तक के लिए भेट देने के बाद फिर से कुशल जीवन के लिए, बच्चे के लिए दुआए मांगते देखा। जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुचने से पहले उसी प्राणी को अपने तट पर मोक्ष के लिए, खुद को प्रभु में समाहित करने के लिए राम नाम जपते देखा। अंतिम पड़ाव को प्राप्त करने के बाद उसी बच्चे के अवशेषों को खुद में समाहित कर प्रभु से मिलते भी देखा। इस पूरी प्रक्रिया के बाद भी बच्चे के बच्चो को अपने पूर्वजो के लिए अपने ही तट पर बछिया छु कर पिंड दान कर तर्पण करते देखा। ये तो थी मानव जीवन से जुडी एक सामान्य क्रिया अब आते कुछ और घटनाओं पर। न जाने कितने अन्य जीवो को नदियों ने अपने गोद से जोड़े रखा, कितनो को जीवन यापन के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से रोजगार दिया। अपने तटों पर ही नदी ने न जाने कितनी संस्कृतियों के मिलन में, उत्सवो मेलो के रूप में लोगो को जुटते देखा। न जाने कितने भूखे पेटो को भरने के लिए अन्न उपलब्ध करने के साथ ही कितनो को भूखे पेट सोते भी देखा। नदी ने ही ना जाने कितनी बार प्यासी धरती की प्यास बुझाई ताकि उससे हमारे और आप जैसे ना जाने कितने लोगो के पापी पेट की प्यास बुझ सके। खैर क्या कभी हम इस नदी के बिना इस ससार की कल्पना कर सकते है? एक बार सोचिये जरा। है न भयावह।।।। 
संगम घाट पर कुड़ो का अम्बार
नदी ने ना जाने हमे कितना कुछ दिया, पर, हमने उसे क्या दिया?
शहरो से निकला शिवरेज का गन्दा पानी, कारखानों/फैक्ट्रियो से निकला रासायनिक कचरा, घरो से फेका गया पोलीथिन का कचरा या अपने स्वार्थ के लिए उसके मार्ग को अवरुद्ध कर बनाया गया बांध।
क्या हमने कभी सोचा इन सब से उस नदी पर क्या बीत रही है? शायद नहीं।
अल्लाह्पुर, इलाहबाद में बाढ़ की त्राशदी की एक झलक


कहते है प्रकृति अपने नियमो को खुद बनाती है। और उसमे किसी और का हस्तक्षेप उसे बर्दाश भी नहीं है। नदिया भी उसी प्रकृति का एक हिस्सा है, वो चंचल तितली की तरह हमेशा शांत इधर-उधर उड़ती रहती है। पर जब उसकी बर्दाश करने की शक्ति, सीमा से बहार हो जाती है तो, उसी नदी को रौद्र काली का रूप धारण करने में जरा भी समय नहीं लगता है। और जब वह काली का रूप धारण करती है तो भष्मासुर की तरह सब कुछ खाती चली जाती है और पूरी की पूरी सभ्यता, संस्कृति को पलट देती है जिसके अवशेष समय के साथ-साथ हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसी खुदाइयो में ही मिलते है।
कौशाम्बी की खुदाई में मिले पुराने नगर के अवशेष 
दो बड़ी प्रचलित कहावते मुझे याद आ रही है जो मेरे हिसाब से शायद सटीक भी है- पहली तो : "जो समाज अपने अतीत से सबक नही लेता उसको नष्ट होने से कोई नहीं रोक सकता" और दूसरी "इतिहास अपने को दोहराता है"
इन कहावतो के बाद कुछ सवाल भी मन में आ रहे है। क्या हम इतिहास से कुछ सीखेंगे? उससे कुछ सबक लेंगे? या हम चाहेंगे इतिहास खुद को फिर से दोहराए
इन्ही सवालो के साथ आपको छोड़े जा रहा हु। सोचियेगा जरूर। इस पूरे लेख में कुछ पसंद आये या गलत लगे तो प्रतिक्रिया जरूर दीजियेगा, ताकि मै अपनी गलतियों को सुधार सकू। आभार!

17 टिप्‍पणियां:

  1. Afsos to ishi baat ka hai ki hum itihaas se sabak nahi lete.

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  2. hamesha se hi ye hota aa raha hai... koi bhi sabhyata jab apne charam par pahuchjati hai to iske baad vo niche ke taraf aati hi hai.

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    1. अंजना जी आपका कहना सही है। पर क्या हमारी वर्त्तमान सभ्यता चरम पर पहुच चुकी है? कोशिश करना चाहिए कितना कम से कम नुकशान हो और वो भी उसके समय पर।

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  3. Koshish kijiye raudra kaali ka janm na ho

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  4. oooo din yad dilai diyo me jab hum apan boriyabistat lei kar bhagat rahe,

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    1. बिनोद जी याद तो आगये वो दिन आपको पर क्या उससे कुछ सिखा आपने/हमने?

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  5. इतिहास अपने को दोहराता है

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  6. 100% true writen kinjal sir. if we not realise it then no one save our nature.

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  7. आप सब के प्रति आभार। पर सवाल अब भी वही जिन्दा है। आखिर हम कब बदलेंगे? आशा है इस पर किसी की प्रतिक्रिया आएगी।

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  8. aapke lekh ki survat kisi aur vishay se hui laga kikuch aur hi hoga. parjab aage bada to kaafi achchha laga aur ant to usse bhi kahijyada achhcha. amit ki tarah mera bhi yahi,,,,,,,, lajawab.

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  9. SHABDO KA ACHCHA PRAYOG KIYA. AUR JO KHAAS BAT RAHI VO YAHI KI BHASHA KO AAPNE SARAL RAKHA, JO KI HM JISE LOGO KO B SAMJH ME A GAYI. VAISE ANT BHALA TO SAB BHALA.

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