वृंदानव में करीब ५४ एकड परिसर में साध्वी ऋतंभरा का ‘वात्सल्य ग्राम’ आश्रम है| इस आश्रम में लोगों ने छोडे बच्चें, महिला और वृद्धों के निवास की व्यवस्था है| आश्रम के विशाल दरवाजे के बाई ओर एक पालना लगा है| कोई भी व्यक्ति, कभी भी इस पालने में अनचाहा बच्चा रखकर जा सकता है| पालने में बच्चा रखनेवाले को, आश्रम से संबंधित व्यक्ति कोई भी प्रश्न नहीं पूछता| पालने में कोई बच्चा रखे जाते ही, पालने पर लगा सेंसर आश्रम के व्यवस्थापन को इसकी सूचना देता है और आश्रम का कोई अधिकारी आकर बच्चें को आश्रम में ले जाता है| ऐसे छोड़े गए बच्चे का आश्रम में प्रवेश होते ही- वह वात्सल्य ग्राम परिवार का सदस्य हो जाता है| अनाथ नहीं रहता| उसे- मॉं, मौसी, दादा-दादी; सब रिश्तेदार मिल जाते है! इसी कारण यहॉं किसे भी ‘अनाथ’ नहीं कहा जाता| यहॉं छोड़े गए हर बच्चें का उपनाम परमानंद (साध्वी ऋतंभरा के गुरू का नाम) है|
आश्रम में बच्चों के लिए, सामवेद गुरूकुलम् पाठशाला है| यहॉं सीबीएससी के अभ्यासक्रमानुसार पढ़ाई के साथ बच्चों के सर्वांगीण विकास के भी उपक्रम चलाए जाते है| यहॉं के बगीचे में बच्चों के सामान्य ज्ञान के परिचय के लिए विविध जानवरों की प्रतिकृतियॉं रखी गई है| बच्चों की नैतिक शिक्षा के लिए रामायण जैसे महाकाव्य के प्रसंगों की झॉंकियॉं बनाई गई है| इन बच्चों को नॅचरोपॅथी और योग की भी शिक्षा दी जाती है| लड़कों को पॉंचवी तक आश्रम के गोकुलम् में रखा जाता है, फिर आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें भोसला मिल्ट्री स्कूल जैसे भारत के अच्छे निवासी शालाओं में भेजा जाता है|
इस शाला के अतिरिक्त आश्रम की दुसरी भी एक शाला है| जहॉं बाहर के करीब ३५० विद्यार्थी मात्र १० रुपये मासिक शुल्क देकर पढ़ते है| इन विद्यार्थिंयों को शाला का गणवेश, एक समय का भोजन और शाला के लिए आवश्यक साहित्य नि:शुल्क दिया जाता है|
परिवारों द्वारा त्यागी गई महिलाओं के लिए आश्रम में गोकुलम् की व्यवस्था है| यहॉं आयु के अनुसार तीन महिलाओं का- मॉं, मौसी और दादी ऐसा एक परिवार बनाकर, प्रत्येक परिवार को निवास के लिए सभी सुविधाओं से युक्त चार कमरों का एक फ्लॅट दिया जाता है| इस एक परिवार के साथ पॉंच से लेकर दस बच्चें रहते हैं| इस प्रकार के तीस परिवार गोकुलम् में रहते है| परिवार के इन महिलाओं को संस्कार, रिती रिवाज और उनके पीछे के तर्क के साथ बच्चों का पालन तथा सामान्य व्यवहार की शिक्षा और आत्मरक्षा का भी प्रशिक्षण दिया जाता है|
पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए आश्रम में ‘गीता रत्न’ प्रशिक्षण केन्द्र है जहॉं इन महिलाओं को बेकरी उत्पाद, एम्ब्रॉयडरी आदि स्वयंरोजगारों का प्रशिक्षण दिया जाता है|
आश्रम में, अतिदक्षता विभाग (आयसीयु) की सुविधा सहित, सभी वैद्यकीय सुविधाओं से युक्त रुग्णालय भी है| इसकी सेवाएँ, आश्रम के निवासियों के साथ बाहर के गरीब लोगों के लिए भी उपलब्ध है| यहॉं नेत्र रुग्णालय में नि:शुल्क सेवा दी जाती है|
साध्वी ऋतुंभरा कहती है, ‘‘मैंने बीस वर्ष पूर्व दिल्ली के ज्वालानगर में महिला सशक्तीकरण योजना के अंतर्गत महिलाओं को स्वयंरोजगार प्रशिक्षण देने का काम शुरू किया था| २००३ में मैं वृंदावन में आई, उस समय आश्रम की सहायता करने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं था| लोगों ने सहायता दी, और आज आप उसके परिणाम देख रहे हो|’’
ये वही साध्वी ऋतम्भरा हैं जिनकी सिंह गर्जना ने 1989-90 के श्रीराम मन्दिर आन्दोलन को ऊर्जा प्रदान की थी, परन्तु उसी आक्रामक सिंहनी के भीतर वात्सल्य से परिपूर्ण स्त्री का ह्रदय भी है जो सामाजिक संवेदना के लिये द्रवित होता है. यही ह्रदय की विशालता हिन्दुत्व का आधार है कि अन्याय का डटकर विरोध करना और संवेदनाओं को सहेज कर रखना.
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